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Training of the Day - 09.08.2017

दिनांक - 09.08.2017
दिन - बुधवार
स्थान - डायट परिसर शेखपुरा


अन्य दिनों की तरह सर्वप्रथम चेतना सत्र का आयोजन किया जाता है | चेतना सत्र के बाद प्रशिक्षण की शुरुआत की जाती है | प्रशिक्षक के रूप में सदन में संजीव सर का आगमन होता है और उनके द्वारा पिछली कक्षा को आगे बढ़ाते हुए मानव संसाधन की चर्चा करते हुए उसके के अभिन्न अंग शिक्षक विषय पर परिचर्चा की जाती है | जिसमे यह स्पष्ट होता है कि "बलाक के सर्वांगीण विकास में शिक्षक को बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य करना पड़ता है | शिक्षक ही वास्तव में बालक का समुचित शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास कर सकता है | विद्यालय प्रांगन में भी शिक्षक को अति-महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है | सम्पूर्ण विद्यालय योजनाओं को वही व्यावहारिक रूप देता है | अच्छी से अच्छी शिक्षण पद्धति प्रभाव रहित हो जाती है यदि शिक्षक उसे सही ढंग से प्रयोग न करे | जिस प्रकार विद्यालय जीवन में प्रधानाध्यापक मस्तिषक के रूप में होता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक आत्मस्वरूप होता है | आत्मा के बिना शरीर निर्जीव होता है | शिक्षक ही विद्यालय के जीवन का गतिदाता होता है |
शिक्षक के गुण -
1.विषय वस्तु में निपुणता
2.पर्याप्त सामान्य ज्ञान
3.ज्ञान का प्यास
4. अभिव्यक्ति में प्रभाव
इसके बाद कक्षा शिक्षण के क्रियाओं के बारे में बताते हुए शिक्षक के कार्य हमें बताये जाते है -
1. कक्षा शिक्षण
2.शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण
3. विभिन्न कार्यों का नेत्तृव
4.विद्यार्थियों को परामर्श एवं सुझाव
5.अपना शिक्षक प्रशिक्षण
6.विषय का अद्यतन ज्ञान
7.विद्यालय के प्रशासनिक कार्यों में भागीदारी
8.विद्यालय के प्रबंधानात्मक कार्यों में भागीदारी
9.वित्त सम्बन्धी कार्य
10.विद्यालय में कार्यक्रमों का आयोजन
11.विद्यालय के बाहर शैक्षणिक कार्यों में सहभागिता
12.अपने सह कर्मियों से शैक्षिक मुद्दों पर चर्चा

इसके साथ प्रथम सत्र का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है |

मध्याह्न के बाद द्वितीय सत्र का प्रशिक्षण आरम्भ होता है | प्रशिक्षक के रूप में सुनील सर का आगमन होता है | पिछली कक्षा के प्रशिक्षण को आगे बढ़ाते हुए उनके द्वारा बालक विकास की विभिन्न अवस्थाओं एवं विकास के विभिन्न आयाम पर चर्चा की जाती है | इसी कड़ी में शारीरिक विकास की चर्चा करते हुए हमें ये बताया जाता है कि बालक के शारीरिक विकास के अंतर्गत तंत्रिका, हड्डियों, मांसपेशियों, वजन, कद एवं दांत का विकास होता है | शारीरिक विकास के अभिप्राय के बारे में स्पस्ट करते हुए बताया जाता है कि शारीरिक विकास का तात्पर्य बालकों में उम्र के अनुसार शारीरिक आकार, शारीरिक अनुपात, हड्डियों, मांसपेशियों दांत, तंत्रिका तंत्र, दृष्टि, श्रवण, निःशक्ता , आकार, भार, ऊंचाई में समुचित विकास होता है |
इसके बाद शारीरिक विकास चक्र के चार अवधियों के बारे में बताया जाता है |
1.प्रथम अवधि (जन्म से दो वर्ष तक) इसमें शारीरिक विकास की गति तीव्र होती है |
2.द्वितीय अवधि (दो वर्ष से वयःसंधि अवस्था प्रारंभ होने तक) - इसमें शारीरिक विकास की गति निम्न होती है |
3.तृतीय अवधि (वयः संधि से 15-16 वर्ष की अवस्था) - इसमें एक बार फिर विकास की गति तीव्र होती है |
4.चतुर्थ अवधि (16 वर्ष से परिपक्वास्था तक) - इसमें एक बार भी फिर शारीरिक विकास की गति मंद हो जाती है |

वयः संधि - लड़कियों में यह अवस्था ग्यारह से पन्द्रह वर्ष तथा लड़कों में बारह से सोलह वर्ष तक की होती है | इस अवस्था में मुख्यतः यौन अंगों का विकास होता है |

इसके साथ द्वितीय सत्र का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है |

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