Header Ads

सार - 02.08.2017

दिनांक - 02.08.2017
दिन - बुधवार
स्थान - डायट शेखपुरा


प्रतिदिन की तरह चेतना सत्र के आयोजन के बाद प्रशिक्षण का पहला सत्र आरम्भ किया गया | व्याख्याता के रूप में संजीव सर का आगमन होता है | उनके द्वारा कुछ अनुशासनात्मक बातें हमें सिखायी जाती है | जिसके बाद विषयवस्तु पर आते हुए विद्यालय विकास योजना के विभिन्न आयाम के बारे में हमें बताया जाता है | जिनमे निम्न की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है -
1.शांत वातावरण
2.भीड़-भाड से दूर शांत वातावरण में
3.नदी-नाले तथा खाई से दूर
4.पर्यावरण स्वच्छ पेड़ -पौधे लगे हो |
5.यातायात का सुलभ साधन हो तथा अनिवार्य सेवाएँ पहुँच में हो |
6.विद्यालय भवन आकर्षक हो
7.पर्याप्त की व्यवस्था हो
8.बैठने की पर्याप्त व्यवस्था
9.खेल का मैदान
10. पुस्तकालय और प्रयोगशाला युक्त हो

इस सभी पर बारी-बारी से परिचर्चा की जाती है | इसके बाद विद्यालय के संसाधन के बारे में बताया जाता है | जिसमे यह स्पष्ट होता है कि विद्यालय मुख्य रूप से तीन संसाधनों पर केंद्रित है -
1. भौतिक संसाधन - विद्यालय भवन, वर्ग कक्ष, पुस्तकालय, पुस्तकें, फर्नीचर, खेल परिसर इत्यादि
2. मानव संसाधन - शिक्षार्थी, शिक्षक, प्रधान शिक्षक, सफाई कर्मी, रसोइया, आदेशपाल, vss इत्यादि
3. वित्तीय संसाधन - विभिन्न प्रकार के विद्यालयी योजनाओं एवं विद्यालय प्रबंधन के लिए प्राप्त राशि इत्यादि

इसके साथ संजीव सर का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है और सदन में सच्चिदानंद सर का आगमन होता है और उनके द्वारा पिछले प्रशिक्षण के दूसरे प्रश्न पर परिचर्चा की जाती है | प्रश्न था - हिंदी शिक्षण के उद्देश्यों पर प्रकाश डाले |
इस प्रश्न पर सर के द्वारा संक्षेप नोटस भी हम प्रशिक्षुओं को लिखाया जाता है | जिससे हिंदी शिक्षण के निम्न उद्देश्य स्पष्ट होते है -
1. छात्रों की लेखन शक्ति का विकास करना
2.छात्रों में पढ़ने-लिखने तथा स्वाध्याय की शक्ति उत्पन्न करना
3.छात्रों की सृजनात्मक शक्ति का विकास करना
4.छात्रों में अन्य मौखिक और लिखित भाषाओँ को समझने की योग्यता उत्पन्न करना

इस बिन्दुओं के साथ प्राथमिक स्तर और उच्च प्राथमिक स्तर पर भी इनके उद्देश्यों से सम्बंधित नोट्स हमें लिखाए जाते हैं |  इसके साथ ही प्रथम सत्र का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है |

मध्याहन के बाद द्वितीय सत्र का प्रशिक्षण आरम्भ होता है | व्याख्याता के रूप में बालदेव सर का आगमन होता है और उनके द्वारा पिछले प्रशिक्षण को आगे बढ़ाते हुए "विद्यालयी और समाजीकरण" विषय पर परिचर्चा की जाती है | जिसमे यह स्पष्ट होता है कि Socialazation एक process ही नहीं वरन Socialazation एक social process है | हालांकि positive socialazation और negatvie socialazation के बारे में भी चर्चा होती है , लेकिन positve socialazation ही वास्तविक socialazation है, क्योकि negative socailazation समाज द्वारा स्वीकार्य नहीं है | यदि वह समाज के द्वारा स्वीकार्य होता है तो उसे वास्तविक socialazation समझा जायेगा | अंत में यह बात उभर कर आती है कि - Socialazation is always postive process. 


No comments

Powered by Blogger.