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सार - 01.08.2017

दिनांक - 01.08.2017
दिन - मंगलवार
स्थान - डायट परिसर शेखपुरा



प्रतिदिन की तरह आज भी चेतना सत्र के आयोजन के बाद प्रशिक्षण की शुरुआत हुई | सदन में  व्याख्याता सच्चिदानंद सर प्रवेश करते हैं | और आज का विचार हम सभी प्रशिक्षुओं के सामने आता है -
"सौ बड़ी डिग्रियों के मूल्य से बड़ा होता है, सत्य का मूल्य |"
                                      -: स्वामी विवेकानद :-
इस विचार पर सदन से कई प्रशिक्षु अपनी-अपनी राय देते हैं | इसे बाद विषय-वस्तु पर आते हुए सर के द्वारा हमें दो प्रश्न दिया जाता है |
Q.1 - किसी बच्चे के लिए मातृभाषा सीखना क्यों अनिवार्य है ?
Q.2 - हिन्दी शिक्षण के उद्देश्य पर प्रकाश डालें |

पहले प्रश्न के उत्तर से पहले हमें परीक्षा में आनेवाले प्रश्नों के प्रारूप से परिचय कराया जाता है | इसके बाद बच्चो के लिए मातृभाषा सीखने की अनिवार्यता के प्रश्न पर हमें उससे सम्बंधित नोट्स लिखाए जाते हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि मातृभाषा निम्न बिन्दुओं के लिए बालकों के लिए आवश्यक है :-
1.विचार-विनमय का साधन
2.सर्वांगीण विकास में सहायक
3.बौद्धिक विकास में सहायक
4.सांस्कृतिक उन्नयन में सहायक
5.रचनात्मक शक्ति के विकास में सहायक

रमण बिहार लाल के अनुसार व्यक्ति को मातृभाषा से तात्पर्य उस भाषा से होता है, जिसकी किसी डोरी को वह अपने शैशवकाल से ही अपने परिवार एवं समाज में रहकर स्वाभाविक रूप से अनुभव द्वारा सीखता है और प्रयोग करता है | इसके साथ सच्चिदानंद सर का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है और सदन में व्याख्याता के रूप में सुनील सर का आगमन हो जाता है | आते ही हमेशा की तरह सुनील सर के द्वारा गणित के मजेदार प्रश्नों में हमें उलझा दिया जाता है, और हम सभी प्रशिक्षु बड़े आनंद के साथ उन प्रश्नों में उलझ जाते है और प्रश्न के सन्दर्भ को समंझने का प्रयास करते है | आज का गणितीय प्रश्न था -
"तीन अंक की संख्या को लिखे, उसके अंकों के स्थान पलट दे, फिर उनका अंतर ज्ञात करे | अंतर के बाद प्राप्त संख्या के अंकों को पलट दे और अंत में अंतर के बाद प्राप्त संख्या और उसके अंक पलटने के बाद प्राप्त संख्या के का योग निकलने को कहा जाता है | उदहारण नीचे है - 





इस गणितीय सवाल का हल कई प्रतिभागी करते है और सभी का उत्तर एक सामान 1089 आता है |
इसके बाद सर के द्वारा विधि एवं विकास के सिद्धांतों के बारे में हमें बताया जाता है | जिसमे निम्न सिद्धांतों के बारे में हमें विस्तार से बताया जाता है -
1. निरंतरता
2.विकास की गति में भिन्नता
3.व्यैक्तिक विभिन्नता
4.एकरूपता
5.सामान्य से विशिष्ट की ओर
6.एकीकरण
7.परस्पर सम्बन्ध
8.विकास की दिशा
9.विकाश लम्बवत न होकर वर्तुलाकार
10.वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम
11.विकास का भविष्यवाणी/पूर्वानुमेय

इसके बाद विकास की दिशा का सिद्धांत पर नोट लिखाते हुए स्पष्ट किया जाता है कि विकास एक निश्चित क्रम, दिशा के अनुसार अग्रसर होती है | विकास की दिशा के दो निश्चित क्रम होते हैं -
1.मस्तकाधोमुखी
2. निकट - दूर - क्रम
इन दोनों के बारे में विस्तार से बताते हुए विकास को प्रभावित करने वाले कारक के बारे में भी हमें बताया जाता है -
1.वंशानुक्रम
2.वातावरण
3.परिपक्वता
4.अधिगम
5.पोषण
6. रोग एवं चोट

इसके साथ प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है | द्वितीय सत्र में अनुपस्थिति विवरणी का वितरण किया जाता है |

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