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सार - 20.07.2017

दिनांक - 20.07.2017
दिन - गुरुवार
स्थान - डायट परिसर शेखपुरा


गुरुओं के दिन अर्थात गुरुवार को सर्वप्रथम चेतना सत्र का आयोजन किया गया | इसके बाद प्रशिक्षण का प्रथम सत्र आरम्भ हुआ | व्याख्याता के रूप में विद्यानंद सर का आगमन हुआ | सबसे पहले हम सभी प्रशिक्षुओं के सामने आज का विचार के रूप में
अधिकार खोकर बैठा रहना यह महादुष्कर्म है |
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देव धर्म है ||
            -:जयद्रथ:-

इस विचार पर सभी प्रशिक्षुओं द्वारा अपने-अपने विचार रखे गए | इसके बाद विद्यानंद सर के द्वारा सरकारी विद्यालय पर चर्चा की गयी | उनमे कस्तूरबा गाँधी, राजाराम मोहन राय, देवी प्रसाद, हादी हासमी, टी. के घोस, कासमी आदि नामो से सम्बंधित विद्यालय के बारे में परिचर्चा की गयी | इसके आलावा स्वतंत्रता सेनानी, शहीद, राष्ट्रीय, स्वतंत्र, शहीद आरक्षी, लोको, आर्य मध्य विद्यालयों की जानकारी दी गयी |

इसी परिचर्चा के बीच में नेतरहाट विद्यालय और सिमुलतला विद्यालय पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी | और हम सभी प्रशिक्षुओं को बताया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों से मेघावी छात्र का चयन इन विद्यालयों में किया जाता है और उन्हें आवासीय विद्यालय में शिक्षण दिया जाता है | चूँकि बिहार से झारखण्ड अलग हो गया | इस कारण से बिहार में सिमुलतला विद्यालय की स्थापना की गयी | इसके बाद नवोदय विद्यालय पर चर्चा करते हुए बताया गया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986के द्वारा  नवोदय विद्यालय की कल्पना की गयी थी |
इसके बाद मॉडल स्कूल जिसे भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा 15 अगस्त 2007 को अपने भाषण में घोषणा कर प्रत्येक प्रखण्ड में एक की दर से कुल 6000 स्कूलों को जमीन पर लाने का प्रयास किया |

इसके बाद प्रशिक्षण कक्ष में व्याख्याता बालदेव सर का आगमन होता है और उनके द्वारा childhood and socialization पर परिचर्चा करते हुए समाजीकरण के अभिलक्षण के बारे में बताया जाता है | इसके बाद समाजीकरण के चरण के बारे में हम सभी को बताया जाता है -
1. INVESTIGATION (अन्वेंषण)
2. SOCIALIZATION (समाजीकरण)
3. MAINTAINENCE (अनुरक्षण)
4. RE-SOCIALAZATION (पुनः समाजीकरण)
5. REMEMBRANCE (अनुसरण)

इसके साथ ही प्रशिक्षण के प्रथम सत्र की समाप्ति हो जाती है |

मध्याहन के पश्चात प्रशिक्षण का द्वितीय सत्र आरम्भ होता है | सदन में व्याख्याता के रूप में पहली बार मो० खुशनूद अहसन राज का आगमन होता है |
सर्वप्रथम उनके द्वारा अपना परिचय दिया जाता है और अपने विषय गणित के सिलेबस पर विस्तार से चर्चा किया जाता है | इसके बाद उनके द्वारा "प्याजे" के संज्ञात्मक विषयों को चार भागों में विभक्त अवस्थाओं से परिचय कराया जाता है -
1. संवेगी संक्रियात्मक अवस्था
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था

इसके बाद उनके द्वारा गणित शिक्षण के मुख्य उद्देश्य एवं NCF 2005 तथा BCF 2008 के मार्गदर्शक सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है -

NCF-2005
1. ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ना
2.पढाई रटंत प्रणाली से मुक्त हो, यह सुनिश्चित करना
3.पाठ्यचर्या का इस तरह संवर्धन कि वह बच्चों के चहुंमुखी विकास के अवसर मुहैया करवाए बजाय इसके वह पाठ्यपुस्तक केन्द्रीय बनकर रह जाए
4.परीक्षा को अपेक्षाकृत अधिक लचीला बनाना और कक्षा के गतिविधिओं से जोड़ना
5.एक ऐसी अधिभावी पहचान की विकास, जिनमे प्रजातान्त्रिक राजव्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताएं समाहित हो


BCF-2008
1.शिक्षा को प्रकृति, समाज तथा विद्यालय के बाहर की जिंदगी के साथ जोड़ना |
2.निर्माणकारी आलोचनात्मक दृष्टिकोण के विकास हेतु पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण अधिगम रणनीतियों की पुनर्रचना करना
3. सीखने की प्रक्रिया में मदद पहुँचाने के लिए वर्ग कक्षों और परीक्षाओं के बारे में नए तरीके से सोचना
4.चौतरफा विकास तथा अपनी व्यैतिक क्षमता को पहुँचाने में बच्चो की मदद करना
5.समाजीकरण सरकारों से युक्त शिक्षित सक्षम और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के बतौर विकसित होने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर बच्चों का पालन - पोषण करना |


इसके बाद प्रशिक्षण का द्वितीय सत्र समाप्त हो जाता है ।


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