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सार - 19.07.2017

दिनांक - 19.07.2017
दिन - बुधवार
स्थान - डायट परिसर शेखपुरा


प्रतिदिन की तरह आज चेतना सत्र का आयोजन किया गया | इसके बाद प्रशिक्षण का प्रथम सत्र आरम्भ हुआ | व्याख्याता के रूप में सुनील सर का आगमन हुआ और उन्होंने हमारे सामने विषय रखा - "विकास"
जिस पर परिचर्चा होने के बाद पता चला कि "व्यवस्थित और संगतिपूर्ण तरीके से परिवर्तनों का एक प्रगतिशील श्रंखला में होना अर्थात बालकों में होने वाले क्रमिक तथा संगत परिवर्तन के उतरोत्तर क्रम को विकास कहा जाता है |"
विकास की चार अवस्थाओं को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जाता है -
1. शैशवास्था (5-6)
2. बाल्यावस्था (6-12)
3. किशोरावस्था (13-18)
4. प्रौढावस्था (18-40)

आधुनिक समझ में मनोवैज्ञानिकों ने विकास की अवस्थाओं को गर्भ धारण से लेकर पुरे जीवन काल तक 10 भागों में बांटा है -

1.पूर्व प्रसूति काल - गर्भ धारण से जन्म तक
2.शैशवास्था - जन्म से 10-14 दिन
3.बचपनवस्था - 14 दिन से 2 वर्ष
4.बाल्यावस्था - 2 से 10-12 वर्ष
 पूर्व बाल्यावस्था - 2 से 6 वर्ष
 उत्तर बाल्यावस्था - 6 से 12 वर्ष
5.प्रा० किशोरावस्था (तरुणावस्था) -  महिला - 11 से 13 वर्ष, पुरुष- 12 से 14 वर्ष
6.प्रा० किशोरावस्था - 13 - 14 वर्ष - 17 वर्ष
7.परावर्ति किशोरावस्था - 17 से 20 वर्ष
8.प्रा० वयस्कता : 21 से 40 वर्ष
9.मध्यावस्था - 40-60 वर्ष
10.बुढ़ापा - 60 वर्ष के बाद


इसके बाद सच्चिदानंद सर के द्वारा हमें सिलेबस से सम्बंधित बातें बताई जाती है | इसके साथ ही प्रथम सत्र का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है |

मध्याहन के बाद प्रशिक्षण का द्वितीय सत्र आरम्भ होता है | इस सत्र में कुछ विशेष प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है, किन्तू अतिथि के रूप में आये ब्रजेश कुमार सुमन के द्वारा जीवन से सम्बंधित बहुमूल्य जानकारी हम सभी प्रशिक्षुओं को दी जाती है | इसके साथ ही द्वितीय सत्र की समाप्ति हो जाती है |

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