Header Ads

सार- 17.07.2017

दिनांक - 17.07.2017
दिन - सोमवार
स्थान- डायट शेखपुरा



सप्ताह के पहले दिन सोमवार को प्रथम सत्र में अन्य दिनों के भांति चेतना सत्र के आयोजन के बाद प्रशिक्षण आरम्भ किया गया | सदन में व्याख्याता बालदेव सर आ आगमन हुआ | और उनके द्वारा "Child & Childhood : Socio-culture concept" विषय रखा गया | सबसे पहले प्रश्न यह आया कि बचपन क्या है और मानव जीवन के विभिन्न अवस्थाओं पर चर्चा की गयी | सदन में मौजूद प्रशिक्षुओं में से किसी ने शैशवास्था, तो किसी ने बाल्यावस्था, किशोरावस्था तो किसी ने प्रोढवास्था तो किसी ने युवावस्था और वृद्धावस्था के बारे में कहा |

अंत में हमें यह जानकारी दी गयी है मुख्य रूप से चार अवस्थाएं होती है -
1. शैशवास्था (Infancy)
2. बाल्यावस्था (Childhood)
3. किशोरावस्था (Adolescence)
4. वयस्कावस्था (Adult)

इसके बाद हमें बताया गया कि विभिन्न कसौटियों के आधार पर बचपन का वर्गीकरण किया गया है | जैसे आयु की कसौटी पर बचपन, कानून की कसौटी पर बचपन, बचपन बाल श्रमिक के रूप में और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में बचपन | लेकिन ये सभी बचपन की परिभाषा को स्पष्ट न कर सके और अंत में हमारे सामने यह परिभाषा आयी कि - ' शैशवास्था और किशोरावस्था के बीच के समय को ही बाल्यावस्था कहा जाता है |"

इसके बाद प्रशिक्षण कक्ष में व्याख्याता के रूप में संजीव सर का आगमन होता है | उनके द्वारा हमें एक प्रश्न दिया जाता है कि 'विद्यालय के प्रकार बताये"
इस पर प्रशिक्षुओं द्वारा नवोदय विद्यालय, कस्तूरबा, मध्य, उच्च, सैनिक विद्यालय इत्यादि विद्यालयों के बारे में बताया जाता है | फिर सर के द्वारा विद्यालय के विभिन्न प्रकारों की जानकारी दी जाती है |

विद्यालय के प्रकार


















शिक्षा के स्तर पर

विद्यालय के आकार के आधार पर

लिंग के आधार पर

प्रबंधन एवं प्रशासन द्वारा संचालित स्रोत के आधार पर
प्राथमिक वि०
उच्च प्रा० (म०वि०)
माध्यमिक वि०
उच्चतर माध्यमिक वि०

I आकृति वाले वि०
H आकृति वाले वि०
E आकृति वाले वि०

छात्र
छात्रा
सह शिक्षा (छात्र-छात्रा)

सरकारी वि०
स्थानीय निकाय द्वारा संचालित  वि०
सरकार द्वारा संपोषित वि०
असम्पोषित निजी विद्यालय
















रकार द्वारा मान्यता प्राप्त
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं
इन सभी विद्यालयों पर बारी-बारी चर्चा की जाती है | इसी क्रम में 'चरवाहा विद्यालय' के बारे में हमें बताया जाता है कि सन 1990 में बिहार के 534 प्रखंडों में से 150 प्रखंडों में इसकी स्थापना की गयी थी और इसका थीम था - "अगर बच्चे स्कूल न जा सके तो स्कूल को बच्चों तक ले जाएँ" और इसके साथ ही प्रथम सत्र समाप्त हो जाता है |

द्वितीय सत्र

मध्याहन के बाद द्वितीय सत्र आरम्भ होता है | व्याख्याता के रूप में परशुराम सर के द्वारा पर्यावरण शिक्षा के सन्दर्भ और इसकी अवधारण की चर्चा की जाती है | साथ ही 'कर्तव्य एवं भूमिका'  शब्दों का मतलब भी हम सभी प्रशिशुओं को बताया जाता है | इसके बाद हम पर्यावरण अध्ययन के महत्व से हम सभी रु-बरु होते हैं | इसके साथ ही द्वितीय सत्र की समाप्ति हो जाती है |

No comments

Powered by Blogger.