सार - 14.07.2017
दिनांक - 14.072017
दिन -शुक्रवार
स्थान- डायट शेखपुरा
काले बादलों के बीच आज चेतना सत्र का आयोजन किया गया | चेतना सत्र के पश्चात कक्षा का संचालन आरम्भ किया गया | आज हम सभी प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देने एक नए व्याख्याता आये | पहली बार होने के कारण मै उनका नाम नहीं जनता, प्रशिक्षण सत्र को आरम्भ किया गया |
सर्वप्रथम आज का विचार आया
"उठो जागो और तब तक मत रुको
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।
"
-- स्वामी विवेकानंद
इस विचार पर सदन में मौजूद सभी प्रशिक्षुओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये | प्रशिक्षण सत्र आगे बढ़ा और हमारे बीच एक सवाल आया कि - बच्चा क्या है
?
इस प्रश्न पर प्रशिक्षुओं ने अपने मत रखे
| किसी ने कहा बच्चा
खुली किताब है तो किसी ने बहता पानी, कच्चा बांस, देश का भविष्य, कोमल मन,कोरा कागज, मिट्टी का लोंदा, नन्हा पौधा।
एक प्रशिक्षु ने बताया कि बच्चा बहता पानी की तरह है क्यों की उसे सिखने से रोका नहीं जा सकता है लेकिन सही दिशा दिया जा सकता है। इस पर सभी लोग एक मत नहीं हो सके
कोरा कागज :- बच्चे कोरे कागज की तरह होते है उस पर जो लिखना चाहे लिख सकते यहाँ लिखने से तात्पर्य यह था की उसे जैसा बनाना चाहे बना सकते है |
इस बात पर भी कई प्रशिक्षुओं सहमत नहीं हुए |
अंत में सर ने बातया की बच्चे नन्हे पोधे की तरह होते है। क्योकि वह अपने चारो और से सीखता है। शिक्षक से अधिक वह बाहर से सीखता है। जिस प्रकार पोधे में खुद विशाल वृक्ष बनने के गुण होते है उसी प्रकार बच्चे में खुद से सिखने के भी गुण होते है।
प्रशिक्षण का पहला सत्र आगे बढ़ता गया और सर psychology के बारे में बात किये
Psychology दो ग्रीक शब्दों के मिलने से बना है psyche तथा logus। psyche का अर्थ है मन(mind) अथवा आत्मा तथा logus का अर्थ है अध्ययन या विवेचना करना । इस प्रकार मनोविज्ञान का अर्थ हुआ आत्मा या मन के संबंध में अध्ययन करने वाला एक विषय
आत्मा या मन की आमुर्ता के कारण मनोविज्ञान की विषय वस्तु अस्पस्ट बने रहने के फलस्वरूप विलियम वुन्ट ने इसे मानसिक क्रियाओं या चेतन अनुमूति के अध्ययन का विज्ञान कहा । चेतन अनुमूति से तातपर्य संवेदना, कल्पना, प्रतिमा, भाव, तर्क,चिंतन आदि मानसिक क्रियाओ से है परंतु इसके अर्थ से मनोविज्ञान के प्रयोगत्मक स्वरुप की व्यख्या नहीं सकने के फलस्वरूप J. B वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का एक वस्तु प्रद विज्ञान माना
|
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है की आधुनिक समय में मनोविज्ञान का अर्थ एक ऐसे विज्ञान से लिया जाता है जिसमें व्यवहारों एवम् मानसिक क्रियाओं दोनों का अध्यन किया जाता है।
इसके बाद अंग्रेजी भाषा में communication की जानकारी हम सभी प्रशिक्षुओं को दी गयी ।
इसके पश्चात प्रथम सत्र की समाप्ति हो जाती है |
द्वितीय सत्र
द्वितीय सत्र का आरम्भ होता है और श्यामपट्ट पर व्याख्याता परशुराम सर के द्वारा caltural programme लिखा जाता है | इसके साथ ही स्पष्ट हो जाता है कि सदन कुछ ही समय में गीत-संगीत से सरोबोर हो जायेगा |
इस कार्य का संचालन हेतु सर्वप्रथम सभापति का चयन किया जाता है | उसके बाद बारी - बारी से सभी प्रशिक्षुओं द्वारा गजल, गीत, स्वागत गाण, चुटकुले, कविता आदि के माध्यम से सदन को सांस्कृतिकमय बना दिया जाता है |
इसी क्रम में व्याख्याता सच्चिदानंद सर के आग्रह पर द्वितीय वर्ष के एक प्रशिक्षु द्वारा मंत्रमुग्ध कर दिया जाने वाला गजल पेश किया जाता है | इसके बाद इस प्रोग्राम का अंत सदन में मौजूद एक प्रशिक्षु के मंत्रमुग्ध कर देने वाले गीत के साथ समाप्त हो जाता है |
दिन -शुक्रवार
स्थान- डायट शेखपुरा
काले बादलों के बीच आज चेतना सत्र का आयोजन किया गया | चेतना सत्र के पश्चात कक्षा का संचालन आरम्भ किया गया | आज हम सभी प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देने एक नए व्याख्याता आये | पहली बार होने के कारण मै उनका नाम नहीं जनता, प्रशिक्षण सत्र को आरम्भ किया गया |
सर्वप्रथम आज का विचार आया
"उठो जागो और तब तक मत रुको
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।
"
-- स्वामी विवेकानंद
इस विचार पर सदन में मौजूद सभी प्रशिक्षुओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये | प्रशिक्षण सत्र आगे बढ़ा और हमारे बीच एक सवाल आया कि - बच्चा क्या है
?
इस प्रश्न पर प्रशिक्षुओं ने अपने मत रखे
| किसी ने कहा बच्चा
खुली किताब है तो किसी ने बहता पानी, कच्चा बांस, देश का भविष्य, कोमल मन,कोरा कागज, मिट्टी का लोंदा, नन्हा पौधा।
एक प्रशिक्षु ने बताया कि बच्चा बहता पानी की तरह है क्यों की उसे सिखने से रोका नहीं जा सकता है लेकिन सही दिशा दिया जा सकता है। इस पर सभी लोग एक मत नहीं हो सके
कोरा कागज :- बच्चे कोरे कागज की तरह होते है उस पर जो लिखना चाहे लिख सकते यहाँ लिखने से तात्पर्य यह था की उसे जैसा बनाना चाहे बना सकते है |
इस बात पर भी कई प्रशिक्षुओं सहमत नहीं हुए |
अंत में सर ने बातया की बच्चे नन्हे पोधे की तरह होते है। क्योकि वह अपने चारो और से सीखता है। शिक्षक से अधिक वह बाहर से सीखता है। जिस प्रकार पोधे में खुद विशाल वृक्ष बनने के गुण होते है उसी प्रकार बच्चे में खुद से सिखने के भी गुण होते है।
प्रशिक्षण का पहला सत्र आगे बढ़ता गया और सर psychology के बारे में बात किये
Psychology दो ग्रीक शब्दों के मिलने से बना है psyche तथा logus। psyche का अर्थ है मन(mind) अथवा आत्मा तथा logus का अर्थ है अध्ययन या विवेचना करना । इस प्रकार मनोविज्ञान का अर्थ हुआ आत्मा या मन के संबंध में अध्ययन करने वाला एक विषय
आत्मा या मन की आमुर्ता के कारण मनोविज्ञान की विषय वस्तु अस्पस्ट बने रहने के फलस्वरूप विलियम वुन्ट ने इसे मानसिक क्रियाओं या चेतन अनुमूति के अध्ययन का विज्ञान कहा । चेतन अनुमूति से तातपर्य संवेदना, कल्पना, प्रतिमा, भाव, तर्क,चिंतन आदि मानसिक क्रियाओ से है परंतु इसके अर्थ से मनोविज्ञान के प्रयोगत्मक स्वरुप की व्यख्या नहीं सकने के फलस्वरूप J. B वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का एक वस्तु प्रद विज्ञान माना
|
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है की आधुनिक समय में मनोविज्ञान का अर्थ एक ऐसे विज्ञान से लिया जाता है जिसमें व्यवहारों एवम् मानसिक क्रियाओं दोनों का अध्यन किया जाता है।
इसके बाद अंग्रेजी भाषा में communication की जानकारी हम सभी प्रशिक्षुओं को दी गयी ।
इसके पश्चात प्रथम सत्र की समाप्ति हो जाती है |
द्वितीय सत्र
द्वितीय सत्र का आरम्भ होता है और श्यामपट्ट पर व्याख्याता परशुराम सर के द्वारा caltural programme लिखा जाता है | इसके साथ ही स्पष्ट हो जाता है कि सदन कुछ ही समय में गीत-संगीत से सरोबोर हो जायेगा |
इस कार्य का संचालन हेतु सर्वप्रथम सभापति का चयन किया जाता है | उसके बाद बारी - बारी से सभी प्रशिक्षुओं द्वारा गजल, गीत, स्वागत गाण, चुटकुले, कविता आदि के माध्यम से सदन को सांस्कृतिकमय बना दिया जाता है |
इसी क्रम में व्याख्याता सच्चिदानंद सर के आग्रह पर द्वितीय वर्ष के एक प्रशिक्षु द्वारा मंत्रमुग्ध कर दिया जाने वाला गजल पेश किया जाता है | इसके बाद इस प्रोग्राम का अंत सदन में मौजूद एक प्रशिक्षु के मंत्रमुग्ध कर देने वाले गीत के साथ समाप्त हो जाता है |
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