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सार - 24.07.2017

दिनांक - 24.07.2016
दिन - सोमवार
स्थान - डायट परिसर शेखपुरा


सप्ताह के पहले दिन अन्य दिनों की तरह चेतना सत्र का आयोजन किया गया | चेतना सत्र के बाद प्रशिक्षण का प्रथम सत्र आरम्भ होता है और व्याख्याता के रूप में महेश सर का आगमन होता है | उनके द्वारा "भाषा और शिक्षा" का प्रशिक्षण शुरू किया जाता है |

ध्वनि संरचना : ध्वनि भाषा की लघुत्तम अर्पवेदक इकाई है | ध्वनि दो प्रकार के होते हैं - स्वर ध्वनि और व्यंजन ध्वनि
स्वर ध्वनि :- स्वर ध्वनियाँ वे हैं, जिसके उच्चारण में हवा आवाध गति से मुख विवल से निकल जाती है |
व्यंजन ध्वनि :- व्यंजन ध्वनियाँ वे हैं जिसके उच्चारण में हवा आवाध गति से न ही निकल पाती है या तो इसे पूर्ण अवरुद्ध होकर फिर आगे बढ़ना पड़ता है | या संकीर्ण मांर्ग से घर्षण खाते हुए निगलना पड़ता है या मध्य रेखा से हटकर एक अथवा दोनों पार्श्वों से होकर निकालना पड़ता है या किसी भाव को कम्पित करते हुए निकलना पड़ता है |

सार्थक ध्वनि :- जिन ध्वनियों के प्रयोग से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं, उसे सार्थक ध्वनियाँ कहते हैं | जैसे अंग्रेजी में Boy - Toy हिंदी में - जल - जाल

शब्द संरचना : वर्णों के सार्थक मेल को शब्द कहा जाता है |
वाक्य संरंचना/विन्यास : वाक्य भाषा की वह सरल इकाई है, जिसमे एक या एक से अधिक शब्द होते हैं, जो अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो या अपूर्ण व्याकरणीय दृष्टि से अपने विशिष्ट सन्दर्भ में अवश्य पूर्ण होते हैं | साथ ही उनमे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक समपिका क्रिया अवश्य होती है |

इसके बाद सर के द्वारा के वर्गाकार आकृति पर हम सभी प्रशिक्षुओं को एक प्रश्न दिया जाता है | जिसका अथक प्रयास करने पर भी हम हल ढूँढ नहीं पाते है | फिर सर के द्वारा उसका उत्तर हम सभी प्रशिक्षुओं को बताया जाता है | इसके बाद हमें समास एवं कारक के बारें में बताया जाता है |

समास -
तत्पुरुष     अंतिम पद प्रधान     राजकुमार
द्वन्द     दोनों पद प्रधान         लोटा-डोरी
अवायाविभाव     प्रथम पद प्रधान     यथाशक्ति
बहुब्रीही     दोनों पद अप्रधान, अन्य पद     नीलकंठ
द्विगु     संख्या प्रधान         त्रिलोकी, त्रिभुज
कर्मधारय     अंतिम पद प्रधान और विशेषण     कमलनयन, पीताम्बर

कारक
कर्ता - ने
कर्म - को
करण - से, के साथ, के द्वारा
संप्रदान - के लिए , को
अपादान - से (पृथक )
संबध - का, के की
अधिकरण - में, पर
संबोधन - हे, अरे

यहाँ पर एक प्रशिक्षु द्वारा एक वाक्य के माध्यम से सारे कारक को प्रयोग को दर्शाया जाता है |

"हे मोहन ! राम ने धर्म की रक्षा के लिए वन से लंका में जाकर तीर से रावण को मारा |" इसके बाद मध्याहन की घोषणा हो जाती है |

मध्याहन के बाद प्रशिक्षण का द्वितीय सत्र आरम्भ होता है | सदन में प्रशिक्षु के रूप खुशनूद सर का आगमन होता है | उनके द्वारा गणित विषय पर चर्चा की जाती है | उनके द्वारा बताया जाता है कि गनती मूर्त से अमूर्त की ओर ले जा कर शिक्षा प्रदान की प्रक्रिया है |
गणित कठिन क्यों ?
* विभिन्न स्तरों पर गणित पढाने के तरीकों का सही न होना |
* अलग -अलग स्तरों पर पर्याप्त पूर्व ज्ञान का न होना अर्थात बुनियाद कमजोर होना |

इसके बाद सर के द्वारा हम सभी प्रशिक्षुओं को अपनी दिनचर्या लिखने को कहा जाता है | जिसे लिखने के बाद कुछ प्रशिक्षुओं द्वारा इसका वाचन भी किया जाता है | वाचन के क्रम में सदन का माहौल ठहाकों में तब्दील हो जाता है | इसके बाद सदन में एक अथिति निशु कुमार का आगमन होता है और नैतिक मूल्यों के बारे में हम सभी को बताया जाता है | इसके साथ ही द्वितीय सत्र का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है |

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